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तू चल अकेला

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तू अकेला ही चल मुसाफिर   क्यों ढूंढे तू हमसफ़र   वक़्त के साथ बदलते सब नकली चेहरे पहनते सब और कितने घाव लगेंगे तुझे   पीठ में छुरा भोंकते सब क्यू लम्हा लम्हा मरना मुसाफिर   तू अकेला ही चल मुसाफिर |   तेरी अपनी है मंज़िलें   तेरी अपनी है ख्वाहिशें   थोड़ा खुद के लिए जी ले मुसाफिर   न थामेंगे तेरा हाथ कभी वो   तूने जिनके लिए वक़्त थाम दिया है   बस दो कदम के साथी है सब   बार बार क्यों दिल दुखाना मुसाफिर   तू अकेला ही चल मुसाफिर |   ~ मुसाफिर      

अपना बनाना तुम

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तकता हूँ राह तुम्हारी कब से दबे पाँव ज़िंदगी में आना तुम जल रही हैं आँखें मेरी धूप में अपने साये की छाँव लाना तुम यूँ जो मिल गए हो राहों में अब कहीं खो ना जाना तुम भर के बाहों में थाम लेना मुझे अपने साथ ले जाना तुम मुझे अब अपना बनाना तुम । दूर से ही जब मिलेगी नज़र मुझे देख के मुस्कुराना तुम जब याद आए मेरी तो मेरा नाम गुनगुना तुम जब मिलना ना हो मुनासिब मुझे ख़्वाब में बुलाना तुम मैं तो एक उम्र से हूँ तुम्हारा मुझे अब अपना बनाना तुम । दे कर मुझे अपनी सारी फ़िकरें मेरी सब ख़ुशियाँ अपनाना तुम ना जाने कितना लम्बा है ये सफ़र ना जाने हम कब तक है हमसफ़र चलते रहेंगे यूँ ही दोनो हाथ थामे ना जाऊँ मैं कहीं, ना कहीं जाना तुम यूँ ही अब सुबह शामें बिताना तुम रख काँधे पे मेरे सर अपना सो जाना तुम मुझे अब अपना बनाना तुम । ~मुसाफ़िर

पल अतरंगी

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बहुत प्यारे है मुझे वो पल अतरंगी हमारे गुनाह के चश्मदीद गवाह है वो आज भी कैद कर रखा है सीने में उन्हें तुमने तो उन्हें कब का रिहा कर दिया था मुझे रिश्वत देते है ये तुम्हारे नाम की तुझ संग बितायी सुबहो और शाम की संग रखूँगा इन्हें जब तक है ज़िन्दगी इन तनहा राहों में यही तो है मेरे संगी बहुत प्यारे है मुझे वो पल अतरंगी । एक घर में कैद कर रखा है इनको बॉट दिए है सबके कमरे अलग अलग बाहर कमरे में तुम्हारी बातें रहती है हर पल मुझसे कुछ ये कहतीं है । आँगन में तुम्हारी हँसी खेलती है ये भी क्या खूब रंग बिखेरती है । हर सीढ़ी पे एक पल बिछा रखा है हर कदम पे यादों का पहरा बिठा रखा है । पहली सीढ़ी पे पहली मुलाकात है दूसरी सीढ़ी पे दूसरी मुलाकात है थोड़ी दूरी पे वो संग बितायी शाम है उसकी अगली सीढ़ी वादों के नाम है आखिरी सीढ़ी चढ़ के वो छत आती है खुला है आकाश और हर सीमा मिट जाती है । ज़िन्दगी यही बिताने को मन करता है इसी घर में बस जाने को मन करता है । मेरे सिराहने बैठ मुझे ये समझाते है फिर ख़ामोशी से ये तुम्हे बुलाते हैे संग इनके जी लेता हूँ वो खोई ज़िन्दगी बहुत प्यारे है मुझे वो...

रमता जोगी बहता पानी

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राहों में खिले फूल तुझे ना सुहाये भटक रहा मुर्दे रिश्तों की लाश उठाये तुझ ज्ञानी को ये मूढ़ता कब तक भाये तोड़ दे बंधन सभी , कर मनमानी सुन बस मन की जब मन में है ठानी बन जा तू रमता जोगी बहता पानी । टुकड़ो में जी रहा, चुल्लू से प्यास बुझाए दो पल का जीवन तू आपाधापी में गवाएं छोड़ दे पतवार, नैय्या वही पार लगाये व्यर्थ तेरी चिंताएं, व्यर्थ तेरी परेशानी थाम ऊँगली उसकी, लिख नयी कहानी बन जा तू, रमता जोगी बहता पानी । मद में चूर भाग रहा तू मंज़िल मंज़िल होता फिर भी कुछ भी ना हासिल संभल जा, थम जा, जी ले ज़रा थक कर याद उसी की है आनी ओढ़ राम नाम चदरिया सुहानी बन जा तू रमता जोगी बहता पानी । ~  # मुसाफ़िर

तुम हो

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मेरे हर अल्फ़ाज़ मे तुम हो मेरे कल मे, आज मे तुम हो तुम ही हो क़िस्मत मेरी मेरे हर इत्तेफ़ाक में तुम हो । बयाँ कभी ना कर पाऊँगा, लेकिन ज़िंदगी के गीत का साज़ तुम हो छुपा है जो रूह मे, वो राज़ तुम हो अपने हो कर भी लगते हो पराए से एक अधूरी ख़्वाहिश, एक ख़्वाब तुम हो । माना तुम्हारे लिए मै कुछ नही मेरी दुनिया मेरा संसार तुम हो सिमट गयी है ज़िंदगी जिसमें वो खामोशी, वो पुकार तुम हो मिलते हो फिर खो जाते हो मेरी जीत, मेरी हार तुम हो । दिखते है तुम्हारे कदम जिधर चलता हैं वही राह ये ‘मुसाफ़िर’ मेरी कहानी मेरा कलाम तुम हो भर लो बाहों मे बस एक बार फिर सो जाऊँगा चैन से मेरा आग़ाज़ मेरा अंजाम तुम हो । ~ #मुसाफ़िर