पल अतरंगी




बहुत प्यारे है मुझे वो पल अतरंगी
हमारे गुनाह के चश्मदीद गवाह है वो
आज भी कैद कर रखा है सीने में उन्हें
तुमने तो उन्हें कब का रिहा कर दिया था
मुझे रिश्वत देते है ये तुम्हारे नाम की
तुझ संग बितायी सुबहो और शाम की
संग रखूँगा इन्हें जब तक है ज़िन्दगी
इन तनहा राहों में यही तो है मेरे संगी
बहुत प्यारे है मुझे वो पल अतरंगी ।

एक घर में कैद कर रखा है इनको
बॉट दिए है सबके कमरे अलग अलग
बाहर कमरे में तुम्हारी बातें रहती है
हर पल मुझसे कुछ ये कहतीं है ।
आँगन में तुम्हारी हँसी खेलती है
ये भी क्या खूब रंग बिखेरती है ।
हर सीढ़ी पे एक पल बिछा रखा है
हर कदम पे यादों का पहरा बिठा रखा है ।
पहली सीढ़ी पे पहली मुलाकात है
दूसरी सीढ़ी पे दूसरी मुलाकात है
थोड़ी दूरी पे वो संग बितायी शाम है
उसकी अगली सीढ़ी वादों के नाम है
आखिरी सीढ़ी चढ़ के वो छत आती है
खुला है आकाश और हर सीमा मिट जाती है ।

ज़िन्दगी यही बिताने को मन करता है
इसी घर में बस जाने को मन करता है ।
मेरे सिराहने बैठ मुझे ये समझाते है
फिर ख़ामोशी से ये तुम्हे बुलाते हैे
संग इनके जी लेता हूँ वो खोई ज़िन्दगी
बहुत प्यारे है मुझे वो पल अतरंगी ।

पोटली में बाँध इनको सफर करता हूँ
खो न जाए कहीं, इस बात से डरता हूँ,
आज मेरे अकेले के है साथी
कल थे ये हम दोनों के संगी
बहुत प्यारे है मुझे वो पल अतरंगी ।

~ #मुसाफ़िर

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