अपना बनाना तुम
तकता हूँ राह तुम्हारी कब से
दबे पाँव ज़िंदगी में आना तुम
जल रही हैं आँखें मेरी धूप में
अपने साये की छाँव लाना तुम
यूँ जो मिल गए हो राहों में
अब कहीं खो ना जाना तुम
भर के बाहों में थाम लेना
मुझे अपने साथ ले जाना तुम
मुझे अब अपना बनाना तुम ।
दूर से ही जब मिलेगी नज़र
मुझे देख के मुस्कुराना तुम
जब याद आए मेरी
तो मेरा नाम गुनगुना तुम
जब मिलना ना हो मुनासिब
मुझे ख़्वाब में बुलाना तुम
मैं तो एक उम्र से हूँ तुम्हारा
मुझे अब अपना बनाना तुम ।
दे कर मुझे अपनी सारी फ़िकरें
मेरी सब ख़ुशियाँ अपनाना तुम
ना जाने कितना लम्बा है ये सफ़र
ना जाने हम कब तक है हमसफ़र
चलते रहेंगे यूँ ही दोनो हाथ थामे
ना जाऊँ मैं कहीं, ना कहीं जाना तुम
यूँ ही अब सुबह शामें बिताना तुम
रख काँधे पे मेरे सर अपना सो जाना तुम
मुझे अब अपना बनाना तुम ।
~मुसाफ़िर

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