रमता जोगी बहता पानी
राहों में खिले फूल तुझे ना सुहाये
भटक रहा मुर्दे रिश्तों की लाश उठाये
तुझ ज्ञानी को ये मूढ़ता कब तक भाये
तोड़ दे बंधन सभी , कर मनमानी
सुन बस मन की जब मन में है ठानी
बन जा तू रमता जोगी बहता पानी ।
टुकड़ो में जी रहा, चुल्लू से प्यास बुझाए
दो पल का जीवन तू आपाधापी में गवाएं
छोड़ दे पतवार, नैय्या वही पार लगाये
व्यर्थ तेरी चिंताएं, व्यर्थ तेरी परेशानी
थाम ऊँगली उसकी, लिख नयी कहानी
बन जा तू, रमता जोगी बहता पानी ।
मद में चूर भाग रहा तू मंज़िल मंज़िल
होता फिर भी कुछ भी ना हासिल
संभल जा, थम जा, जी ले ज़रा
थक कर याद उसी की है आनी
ओढ़ राम नाम चदरिया सुहानी
बन जा तू रमता जोगी बहता पानी ।
~ #मुसाफ़िर

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