उसकी याद आती है
मिलती है कभी जो राहों मे
वो मुँह फेर के, अजनबी बन जातीं है
इश्क़ का ये अन्दाज़ निराला
मेरी होकर भी, वो खुद को पराया बताती है
डूबा रहता हूँ उसके ख़यालों में
वो नही आती, बस उसकी याद आती है ।
चलो मै झूठा ही सही
बिस्तर की सिरवटें तो सच बताती है
भुला दी है उसने जो
कहानी वो, ये ख़ामोशी से सुनाती है
बदलता हूँ जब मैं करवटें
वो बैठ सिराहने, चुपके से मुस्काती है
महकाती है मेरी रातें यूँ
वो सपनो मे भी चाँदनी भर जाती है
उठता हूँ उसकी यादें ले के
वो चली जाती है, उसकी ख़ुशबू रह जाती है ।
कच्चे धागे इश्क़ के वो फिर तोड़ जाती है
रह जाता हूँ तनहा मैं
दूर गगन मे, वो तारों सा टिमटिमाती है
करता हूँ इंतज़ार सदियों से
वो नही आती, बस उसकी याद आती है ।
वो नही आती, बस उसकी याद आती है
उसकी याद आती है ।
~ #मुसाफ़िर
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