कुबूल है क्या ?
ये दर्द, ये रंजिशे, ये नफरत भरी निगाह,
अरे! इश्क़ ही तो है, कोई भूल है क्या ?
अरे! इश्क़ ही तो है, कोई भूल है क्या ?
हर तारे को टूटकर बिखरना ही है,
ये इस ज़माने का कोई उसूल है क्या ?
ये इस ज़माने का कोई उसूल है क्या ?
बस तुम्हारे ही रास्तों पे चलते रहें,
और हमारे ख्वाब सारे फ़िज़ूल हैं क्या ?
और हमारे ख्वाब सारे फ़िज़ूल हैं क्या ?
अरे, कौन ये कायदे कानून बना गया,
इंसान ही तो होगा, रसूल है क्या ?
इंसान ही तो होगा, रसूल है क्या ?
चलो, हम भी एक कायदों की किताब लिखते हैं,
सच - सच बताना, कुबूल है क्या ?
सच - सच बताना, कुबूल है क्या ?

Comments
Post a Comment