मीलों दूर से
थम सा जाता है वक़्त उस घड़ी
जब मैं तुझसे नज़रें मिलाता हूँ
लफ़्ज़ों में जो बयान ना हो सका
वो हाल-ए-दिल आँखों से बताता हूँ
तू कभी जज़्बात समझता ही नही
मै तो इश्क़ वही रोज़ाना जताता हूँ ।
हर सुबह वही उम्मीद ले जाता हूँ
हर शाम वही नाकामी ले आता हूँ
दिन भर जोड़ता हूँ लम्हों की किरचे
रात भर उन्हें सीने में चुभाता हूँ
बीत रही है ज़िंदगी इस कदर कि
तुझे ही कमाता हूँ, तुझे ही गँवाता हूँ ।
बनेगा तू हमसफ़र एक दिन
ख्वाहिश यही दिल में लिए चला जाता हूँ ।
तुझे मंज़िल कहूँ, या सफ़र, या ख़ुदा
तू बता दे अपना नाम किसी तरह
मै तो बस ‘मुसाफ़िर’ कहलाता हूँ ।
~ मुसाफ़िर

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