तेरा चेहरा

















खुदा ने करिश्मा ये अजब किया है
तेरे चेहरे पे मेरी ज़िंदगी को लिखा है |

तेरी आँखें है बचपन मेरा
कभी शरारत कभी मासूम है
जागा हूँ कई रातें इनमे
मेरी हर ख़ता इन्हें मालूम है |

तेरे लबों के पास जो तिल है
वहीं हम पहली बार मिले थे
उसी दिन तुम मेरे खुदा बने
उसी पे सजदे अता किए थे |

तेरे लब है जवानी मेरी
कभी हँसीं तो कभी इश्क़ है
इठलाते है करके नादानियाँ
अपने गुनाहों से ये ख़ुद बेफ़िक्र है |

तेरा माथा है बुढ़ापा मेरा
परेशानियों सी पड़ी हैं सिलवटें कई
मिलता है पता मेरा इस सिंदूर मे
रिश्तों सी बेरंग हो गयी है लटें कई |

~ मुसाफ़िर

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