काश
गुज़रा आज फिर उन गलियों से
जहाँ साथ सफ़र करते थे हम
वही राहें, वही मकाँ, वही चेहरे
हमारे इश्क़ के सारे गवाह नज़र आए
अकेला ही मिला उनसे मैं
सब हाल चाल पूछे बताए
जहाँ साथ सफ़र करते थे हम
वही राहें, वही मकाँ, वही चेहरे
हमारे इश्क़ के सारे गवाह नज़र आए
अकेला ही मिला उनसे मैं
सब हाल चाल पूछे बताए
तुम्हारी कोई ख़बर न मिली
बस पुराने सभी क़िस्से सुनाए
और किससे पूछूँ पता तुम्हारा
अब ना कोई तरकीब सुझाए
एक और दिन यूँ ही गुज़र गया
ना मौत आयी, ना तुम आए ।
थक कर जो मूँदी आँखें मैंने
तुम बड़ी पास नज़र आए
हरकत हुई दिल के बागान में
मुरझाये फूल फिर खिल आये
कुछ सुकून आया मेरी रूह को
जब काँधे पे सर रख तुम मुसकाए
भुला के सारे ग़म ज़माने के
रो लिया मै तुमको गले लगाए
काश ये लम्हा यूँ ठहर जाए
काश ये ज़िंदगी यूँ सिमट जाए
मेरी कहानी कुछ यूँ लिखी जाए
तेरी बाहों मे 'मुसाफ़िर' फ़ना हो जाए ।
~मुसाफ़िर

उम्दा अल्फाज़ो में पिरोई हुई एक दास्ताँ
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