कुछ अदनी अभिलाषाओं में. .. .


जो संभल नहीं सकता था ऐसा काम उठाना था ही क्यों,
जो बदल नहीं सकता था उस अंजाम पे आना था ही क्यों,
जीवन की गाड़ी को शंकाओ की रेल बना डाला,
कुछ अदनी अभिलाषाओं में पापों का ढेर लगा डाला
जीवन की आपा - धापी में कुछ रिश्ते थे जो छूट गए,
कुछ बेवकूफियों के कारण, कुछ अपने थे जो रूठ गए,
कुछ राह में हर इक साथ रहे, कुछ हमराही तो लौट गए,
इन हसरत भरी निगाहों में कितने सपने थे टूट गए,
न जोड़ सके सारे रिश्ते, जब सारा गणित लगा डाला,
कुछ अदनी अभिलाषाओं में पापों का ढेर लगा डाला
हां! होगा मेरा भी कसूर, पर मायूसी की बात नहीं,
जीवन में उजियारे भी हैं, कोई ये ही अंतिम रात नहीं,
इस सादे नील - गगन को कितने तारो से है सजा दिया,
मन हर पल ये ही सोच रहा, क्या था मुझको क्या बना दिया,
उथल - पुथल सागर का मद्धम नदी से मेल करा डाला,
कुछ अदनी अभिलाषाओं में पापों का ढेर लगा डाला
एक चाहत थी पा सकूं उसे, कि हमको जो प्यारा होगा,
गर सोच सको तो सोचो क्या कुछ दोष तुम्हारा भी होगा,
हम बेपरवाह से बातों को दिल में लेकर भी अड़े रहे,
पर नासमझों सी बातों पर पत्थर दिल हारा भी होगा,
जज्बातों को साहिल के, दरिया ने खेल बना डाला,
कुछ अदनी अभिलाषाओं में पापों का ढेर लगा डाला

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