खुशियों का बाज़ार















देखा एक खुशियों का बाज़ार
जहाँ बिकती थी खुशिया हज़ार

कर लाया मैं थोड़ी खरीददारी
लिया सब कुछ बारी बारी

सबसे पहले उम्मीदे खरीद लाया
उनसे सुन्दर सपनो को सजाया

फिर आयी खुशियों की बारी
कितनी चंचल कितनी प्यारी

कुछ मैं रखता बाकी तुमको देता
जीवन कितना सुखमय होता

आँख खुली तो मैंने पाया
कुछ भी तो मैं साथ ना लाया

टूटा सपना हुआ सवेरा
ना कुछ पास, ना कोई मेरा

कितना ही खुद को समझाया
बस एक बात समझ ना पाया

बिकता जब सबकुछ होता सब व्यापार
नहीं मिलता तो क्यों नहीं मिलता
खुशियों का बाज़ार |


~ मुसाफिर 

Comments