कुछ इस तरह

















आती है ज़िंदगी मे ख़्याल के जैसे
साँसो सी जिस्म मे घुलती है
दिल मे बसे है लोग कई मेरे
उसे रूह मे पनाह मिलती है
मेरी परछाईं के कपड़े पहन
संग साये सी चलती है
कुछ इस तरह वो मुझे मिलती है ।

एक धूप के टुकड़े मे घर है उसका
रात की धुली चाँदनी मे पलती है
मौसम सा मिज़ाज बक्शा खुदा ने
जाने कितने रंग बदलती है
झाँकती है कल की खिड़की से
यादों की गलियों मे संग चलती है
कुछ इस तरह वो मुझे मिलती है ।

सुबह पलकों पे बिठा लेता हूँ उसे
रात को ओढ़ के सो जाता हूँ
ओस सी बरसती है मुझपे रात भर
सपनो मे भी साथ सफ़र करती है
कुछ इस तरह वो मुझे मिलती है ।

मेरी मुट्ठी में आसमान थमा के
ख़ुद राहों में बिछती है
उसको पा कर मैंने जाना
दुनिया कितनी सस्ती है
एक अक्षर से नाम हमारा
एक ही हमारी हस्ती है
मुसाफ़िर हूँ मैं, माँझी भी मैं
वो इस माँझी की कश्ती है
कभी नदी सी बहती है
कभी पवन सी चलती है
कुछ इस तरह वो मुझे मिलती है ।

~ मुसाफ़िर

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