चिराग. .. .



बेवफ़ा माशूक़ थी, ज़ुर्म मोहब्बत का था,
हम रात भर चिरागों को जलाते रहे.

वो चिराग जलकर भी मेरे साथ ही रहा,
हम फ़ना होकर भी उनके साथ न रहे.

कुछ देर बैठ कर चिरागो से गुफ़्तगू की,
कम्बख्त उन्हें भी कोई अपना जला गया.

सीखा है मैने भी जीना चिराग से,
किस तरह वो आखिरी बूँद तक जलता ही रहा.

कितना बेगरज़ होगा वो चिराग भी,
जो खुद जलकर मेरे घर को रोशन कर गया.

वो खिड़की पे रखा चिराग, आंधियों से लड़ता रहा,
हम लिहाफ़ ओढे़ भी कंपकंपाते रहे.

रात बढ़ती रही, रोशनी न हुई,
और फ़िर चिरागाें ने भी ना दम तोड़ दिया. .. .








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