तुम हो
मेरे हर अल्फ़ाज़ मे तुम हो
मेरे कल मे, आज मे तुम हो
तुम ही हो क़िस्मत मेरी
मेरे हर इत्तेफ़ाक में तुम हो ।
बयाँ कभी ना कर पाऊँगा, लेकिन
ज़िंदगी के गीत का साज़ तुम हो
छुपा है जो रूह मे, वो राज़ तुम हो
अपने हो कर भी लगते हो पराए से
एक अधूरी ख़्वाहिश, एक ख़्वाब तुम हो ।
माना तुम्हारे लिए मै कुछ नही
मेरी दुनिया मेरा संसार तुम हो
सिमट गयी है ज़िंदगी जिसमें
वो खामोशी, वो पुकार तुम हो
मिलते हो फिर खो जाते हो
मेरी जीत, मेरी हार तुम हो ।
दिखते है तुम्हारे कदम जिधर
चलता हैं वही राह ये ‘मुसाफ़िर’
मेरी कहानी मेरा कलाम तुम हो
भर लो बाहों मे बस एक बार
फिर सो जाऊँगा चैन से
मेरा आग़ाज़ मेरा अंजाम तुम हो ।
~ #मुसाफ़िर

बहुत उम्दा पंक्तियाँ...
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